मुद्दत के बाद
मुद्दत के बाद उनसे मुलाकात हुई है
सोचता हूँ वाकई क्या बात हुई है
उनकी अदा में अभी भी बात वही है
दिल में हमारे दोस्तो खलभली पड़ी है
हमको तो उनकी चाह अभी भी वही है
क्या उनके दिल में मेरे लिए चाह वही है
यहाँ तो अभी भी आतिशे-इश्क सुलग रही है
क्या एक चिनगारी वहाँ भी बची हुई है
पूछूँ कैसे पूछने की बात नहीं है
यह आशिकी की बात है जो नाज़ुक बड़ी है
क्या फिर से मुहब्बत की घड़ी आन पड़ी है
—-लक्ष्मीनारायण गुप्त
—-१८ नवम्बर, २०१४
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